Bhishma Ashtami 2021: जानें कब है भीष्माष्टमी, इसका माहात्म्य, पूजा विधि और कथा

Published by Ved Shri Published: February 18, 2021

माघ शुक्ल अष्टमी को भीष्माष्टमी या भीष्म अष्टमी के नाम से जाना जाता है। महाभारत युद्ध में शर शैय्या पर रहते हुए भीष्म ने सूर्य के उत्तरायण होने के पश्चात इसी दिन अपने प्राण त्यागे थे। इस दिन भीष्म के श्राद्ध और तर्पण का विशेष महत्व कहा गया है। इस बार यह तिथि शुक्रवार, 19 फरवरी 2021 (Bhishma Ashtami 2021) को है। आइये जानते हैं इसका माहात्म्य, पूजा विधि और कथा।

भीष्माष्टमी माहात्म्य
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार इस दिन भीष्म के निमित्त तर्पण करने से व्यक्ति के सभी पापों का नाश होता है और उसके सभी अभीष्ट सिद्ध होते हैं। इस दिन व्रत रहने से व्यक्ति को मातृ-पितृ भक्त गुणवान संतान और मोक्ष की प्राप्ति होती है। जिन जातकों की कुंडली में पितृ दोष हो तो उसके निवारण के लिए इस दिन को बहुत ही उत्तम माना गया है।

भीष्माष्टमी पूजा विधि
इस दिन स्नानोपरांत पूजन कर भीष्म के निमित्त “वसूनामवताराय शंतनोरात्मजाय च। अर्घ्यं ददामि भीष्माय आबाल्यब्रह्मचारिणे।।” मंत्र से अर्घ्य दें और कुश, जौ, तिल, गंध, पुष्प, गंगाजल आदि से भीष्म का श्राद्ध एवं तर्पण करें। माना जाता है की इस दिन प्रत्येक सनातनी को भीष्म के निमित्त कम से कम तर्पण तो जरूर करना चाहिए।

भीष्माष्टमी कथा
भीष्म आठ वसुओं में से एक के अवतार माने जाते हैं। वे हस्तिनापुर के राजा शांतनु और गंगा के पुत्र थे जिनका असली नाम देवव्रत था। जब राजा शांतनु सत्यवती के रूप लावण्य पर मोहित होकर विवाह का प्रस्ताव दिया तो सत्यवती के पिता ने अपनी कन्या के पुत्र को राज्य का उत्तराधिकारी बनाने की शर्त रखी परंतु राजा शांतनु ने इस शर्त को मानने से इंकार कर दिया। लेकिन वे सत्यवती की याद में उदास रहने लगे तब देवव्रत ने इस उदासी का कारण पता करके स्वयं सत्यवती के पिता के पास गए और अपना उत्तराधिकार छोड़ने एवं आजीवन अविवाहित रहने की भीषण प्रतिज्ञा ली। देवव्रत की इसी भीषण प्रतिज्ञा से उनका नाम भीष्म पड़ा और उनके पिता महाराज शांतनु ने उन्हे इच्छा मृत्यु का वरदान दिया। इसीलिए मान्यता है कि इस दिन भीष्म के निमित्त श्राद्ध और तर्पण करना चाहिए इससे भीष्म जैसी श्रेष्ठ संतान एवं मोक्ष की प्राप्ति होती है।

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