Sankasht Chaturthi 2021 : जानें कब है संकष्ट चतुर्थी (तिल चौथ), क्या है इसका माहात्म्य, पूजा विधि और कथा

Published by Ved Shri Published: January 29, 2021

प्रत्येक कृष्ण पक्ष चतुर्थी को संकष्ट चतुर्थी मनाई जाती है पर माघ महीने की संकष्ट चतुर्थी (Sankast Chaturthi Vrat) का विशेष महत्व है। इसको तिल चौथ के नाम से भी जाना जाता है। संकट के निवारण के लिए इस दिन संकष्ट नाशक भगवान गणेश की पूजा की जाती है। माएँ अपने बच्चों को संकट से बचाने हेतु व्रत करती हैं और भगवान गणेश और चंद्रमा की पूजा कर चंद्र को अर्घ्य देती हैं। आइये जानते हैं इस वर्ष कब है संकष्ट चतुर्थी, क्या है इसका माहात्म्य, पूजा विधि और कथा।

संकष्ट चतुर्थी का माहात्म्य
यह व्रत पुत्र की लंबी आयु और संकटों से उसकी रक्षा के लिए किया जाता है। इस व्रत को माघ से आरंभ करके हर महीने करें तो संकटों का नाश हो जाता है। भविष्य पुराण के अनुसार किसी भी तरह का संकट हो तो उसके निवारण के लिए संकष्ट चतुर्थी का व्रत करना चाहिए:
यदा संक्लेशितो मर्त्यो नानादुःखैश्च दारुणैः।
तदा कृष्णे चतुर्थ्यां वै पूजनीयो गणाधिपः।।

संकष्ट चतुर्थी पूजा विधि
व्रती को चाहिए की इस दिन सुबह उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर स्वच्छ कपड़े पहनें। फिर ‘गणपतिप्रीतये संकष्टचतुर्थीव्रतं करिष्ये’ मंत्र को पढ़ते हुए व्रत का संकल्प लें। दिन भर निराहार रहें और सायंकाल में गणेश जी का षोडशोपचार पूजन करें तथा चंद्रोदय के समय चंद्र का पूजन करके “ज्योत्सनापते नमस्तुभ्यं नमस्ते ज्योतिषांपते। नमस्ते रोहिणीकान्त गृहाणार्घ्यं नमोऽस्तु ते।।” मंत्र से अर्घ्य दें। भोग में तिलकूट का प्रसाद और तिल के लड्डू चढ़ाएं।

संकष्ट चतुर्थी कथा
संकष्ट चतुर्थी की कथा के अनुसार प्राचीन काल में मयूरध्वज नाम के एक बहुत ही प्रतापी और धर्मात्मा राजा राज करते थे। एक बार उनका पुत्र कहीं खो गया। उन्होंने बहुत छानबीन करायी पर वह नहीं मिला। तब मंत्रीपुत्र की धर्मवती स्त्री के कहने पर राजा ने अपने पूरे परिवार के साथ संकष्ट चतुर्थी का व्रत पूरे विधि-विधान से किया। गणेश जी की कृपा से खोया हुआ पुत्र वापस आ गया और उसने मयूरध्वज की आजीवन सेवा की।

कब है संकष्ट चतुर्थी
यह व्रत चंद्रोदय व्यापिनी चतुर्थी को किया जाता है। इस वर्ष माघ माह की संकष्ट चतुर्थी रविवार, 31 जनवरी 2021 को पड़ रही है। इस दिन शाम 8:25 पर चतुर्थी तिथि का आरंभ होगा और रात्रि 8:42 पर चंद्रोदय होगा अतः 8:25 के बाद गणेश जी का पूजन करें और चंद्रोदय के उपरांत चंद्रमा की पूजा-अर्चना कर अर्घ्य देना उत्तम होगा।

    Tags: