जानें कब है ऋषि पंचमी, क्या है माहात्म्य, पूजा विधि, शुभ मुहूर्त एवं कथा

Published by Ved Shri Last Updated: September 16, 2023

ऋषि पंचमी व्रत का सनातन धर्मावलम्बियों में अत्यंत महत्व है। यह व्रत शरीर के द्वारा अशौचावस्था में किये गए स्पर्शास्पर्श तथा अन्य पापों के प्रायश्चित के निमित्त किया जाता है। इस व्रत से स्त्रियों को रजस्वलावस्था में स्पर्शास्पर्श का ध्यान रखने की शिक्षा मिलती है। साथ ही पुरुषों को भी इस दौरान नियम-संयम से रहने की सीख मिलती है। आइये जानते हैं ऋषि पंचमी व्रत का माहात्म्य, पूजा विधि, शुभ मुहूर्त एवं कथा।

ऋषि पंचमी माहात्म्य
भाद्रपद शुक्ल पक्ष पंचमी को ‘ऋषि पंचमी’ के नाम से जाना जाता है और इस दिन किये जाने वाले व्रत को ऋषि पंचमी व्रत कहते हैं। यह व्रत जानते हुए या अनजाने में किये गए पापों को नष्ट करने के लिए किया जाता है। अतः स्त्री और पुरुष दोनों ही इस व्रत को कर सकते हैं। आमतौर पर स्त्रियों के बीच यह व्रत अधिक लोकप्रिय है क्योंकि उनके द्वारा रजस्वला अवस्था में हुए स्पर्शास्पर्श से होने वाले पाप के नाश के लिए वे इस व्रत को करती हैं। इस व्रत में सप्तर्षियों सहित अरुंधति का पूजन होता है इसीलिए इसे ऋषि पंचमी कहते हैं।

ऋषि पंचमी पूजा विधि
ऋषि पंचमी के दिन व्रती को चाहिए कि सूर्योदय से पहले उठकर दोपहर तक उपवास करके मध्याह्न के समय किसी नदी या सरोवर पर जाए। वहाँ अपामार्ग की दातुन से अपने दाँत साफ कर शरीर में मिट्टी लगाकर स्नान करे। स्नान के उपरांत पंचगव्य का पान करे और फिर घर आकर पूजास्थल पर सर्वतोभद्र मण्डल बनाकर उसपर घट स्थापित कर पञ्चरत्न, फूल गंध और अक्षतादि से उसका पूजन करना चाहिए। तदनन्तर “अमुकगोत्रा अमुकदेवी अहं मम आत्मनो रजस्वलावस्थायां गृहभाण्डादिस्पर्शदोषपरिहारार्थं अरुन्धतीसहित सप्तर्षिपूजनं करिष्ये” मन्त्र से सप्तर्षियों और अरुंधति की पूजा का संकल्प करना चाहिए। फिर कलश के पास अष्टदल कमल बनाकर उसपर सप्तर्षियों और अरुंधति की प्रतिष्ठा कर षोडशोपचार पूजन करे। पूजन के पश्चात ब्राह्मण भोजन करा स्वयं भोजन करे। इस दिन बैल के जोतने से उत्पन्न कोई भी अन्न नहीं खाना चाहिए। नमक का प्रयोग वर्जित है और दिन में केवल एक ही बार भोजन करना चाहिए।

ऋषि पंचमी मुहूर्त
इस वर्ष ऋषि पंचमी का व्रत बुधवार, 20 सितम्बर 2023 को है। पंचमी तिथि का आरम्भ मंगलवार, 19 सितम्बर 2023 को दोपहर 01 बजकर 43 मिनट पर होगा और अंत बुधवार, 20 सितम्बर 2023 को दोपहर 02 बजकर 16 मिनट पर होगा।

ऋषि पंचमी कथा
ऋषि पंचमी की कथा के अनुसार सतयुग में श्येनजित् नामक राजा के राज्य में सुमित्र नाम का एक विद्वान् ब्राह्मण अपनी साध्वी व पतिव्रता पत्नी जयश्री के साथ रहता था। एक बार रजस्वला अवस्था में अनजाने में उसने घर का सारा काम किया और पति का भी स्पर्श कर लिया। रजस्वला अवस्था में स्पर्शास्पर्श का ध्यान नहीं रखने के कारण मृत्यु के उपरांत पत्नी को कुतिया तो पति को बैल की योनि प्राप्त हुई पर पूर्व जन्म के पुण्यों के कारण उन्हें ज्ञान बना रहा और संयोग से वे अपने ही पुत्र के घर रह रहे थे। उनका पुत्र सुमति भी विद्वान् और मातृ-पितृ भक्त था जो पशुओं की भाषा भी समझता था। एक बार श्राद्ध के लिए उसने पत्नी से खीर बनवाई जिसे एक सर्प ने आकर विषाक्त कर दिया। कुतिया बनी ब्राह्मणी यह सब देख रही थी तो अपने पुत्र को ब्राह्मणों की हत्या के पाप से बचाने के लिए अपनी पुत्रवधु के सामने ही उस खीर को छू लिया जिससे सुमति की पत्नी क्रोधित होकर चूल्हे की जलती लकड़ी से उसकी पिटाई कर दी। उस दिन कुतिया और बैल दोनों को खाना नहीं मिला। रात्रि में कुतिया ने बैल को सारी बात बताई और दोनों बात करते रहे की इस तरह उनके भूखे रहने से तो उनके पुत्र द्वारा किया श्राद्ध व्यर्थ हो जायेगा। दैववश सुमति ने दोनों की वार्तालाप सुन ली और अपने माता-पिता की इस अवस्था से अत्यंत दुखी होकर एक ऋषि के आश्रम जाकर उनकी इस दशा का कारण और इससे मुक्ति का उपाय पूछा। तब ऋषि ने अपने तपोबल से सारा वृत्तांत जानकर उसे भाद्रपद शुक्ल पंचमी को ‘ऋषि पंचमी’ का व्रत करने को कहा जिसके फलस्वरूप उसके माता-पिता को पशु योनि से मुक्ति मिल गई।

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