फाल्गुन कृष्ण पक्ष चतुर्दशी को महाशिवरात्रि का व्रत किया जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार प्रतिपदा आदि सोलह तिथियों के स्वामी अग्नि आदि देवता हैं। तिथि अनुसार स्वामी देवता के पूजन से विशेष कृपा प्राप्त होती है। चतुर्दशी तिथि के स्वामी शिव हैं और रात्रि व्यापिनी चतुर्दशी लेने से ही इसका नाम शिवरात्रि हुआ जो सर्वथा उचित जान पड़ता है। इसी वजह से प्रत्येक माह की कृष्ण पक्ष चतुर्दशी को मास शिवरात्रि का व्रत होता है। आइये आगे जानते हैं की फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी का इतना महत्व क्यों है जिससे इसे सिर्फ शिवरात्रि ना कहके महाशिवरात्रि (Mahashivratri) कहा जाता है।
महाशिवरात्रि का रहस्य
माना जाता है की फाल्गुन कृष्ण पक्ष चतुर्दशी को शिवलिङ्ग का प्रादुर्भाव हुआ जो इसे विशेष बनाती है और शिवरात्रि की जगह इस तिथि को महाशिवरात्रि का दर्जा देती है। जैसे अमावस्या के क्षीण चंद्र तथा अन्य तामसी दुष्प्रभावों से बचने के लिए एक दिन पहले चतुर्दशी की उपासना की जाती है वैसे ही वर्ष के अंतिम मास से ठीक एक महीने पहले महाशिवरात्रि मनाई जाती है। इसके अलावा आप जानते हैं की एकादश (11) रूद्र हैं और इसलिए वर्ष के ग्यारहवें मास में महाशिवरात्रि मनाना पूरी तरह से तर्क संगत जान पड़ता है।
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महाशिवरात्रि पर रात्रि जागरण का महत्त्व
जहाँ अन्य देवी देवताओं की पूजा अधिकतर दिन में की जाती है वहीं शिव आराधना को रात्रिकालीन ही उपयुक्त माना गया है। क्या आप जानते हैं की शिव को रात्रि और कृष्ण चतुर्दशी ही क्यों प्रिय है? शिव संहारक हैं और तमोगुण के अधिष्ठाता हैं अतः तमोमयी रात्रि से उनका विशेष लगाव है और इसीलिए उनकी पूजा या तो निशीथ काल (अर्द्ध रात्रि) में या प्रदोष काल (रात्रि की शुरुआत) में होती है। वहीं शुक्लपक्ष में चन्द्रमा सबल होता है तो कृष्ण पक्ष में निर्बल और इसी वजह से अमावस्या के आस-पास तामसी शक्तियां और वृत्तियाँ प्रबल हो जाती हैं। अतः रात्रि और क्षीण चंद्र के प्रभावों के शमनार्थ भगवान शिव की आराधना का विधान किया गया है। रात्रि जागरण और अर्द्ध रात्रि की पूजा के लिए स्कन्दपुराण में लिखा है कि ‘निशिभ्रमन्ति भूतानि शक्तयः शूलभृद् यतः। अतस्तस्यां चतुर्दश्यां सत्यां तत्पूजनं भवेत्।।’ अर्थात् रात्रि के समय भूत, प्रेत, पिशाच, शक्तियाँ और स्वयं शिवजी भ्रमण करते हैं अतः उस समय इनका पूजन करने से मनुष्य के पाप दूर हो जाते हैं।
सत्यं शिवं सुन्दरम्