जानें कब है अनन्त चतुर्दशी व्रत, क्या है इसका माहात्म्य, पूजा विधि, शुभ मुहूर्त एवं कथा

Published by Ved Shri Published: September 7, 2022

भाद्रपद शुक्ल पक्ष चतुर्दशी को अनन्त चतुर्दशी कहा जाता है। इस दिन सर्वत्र व्यापक भगवान अनन्त की पूजा की जाती है और अलोना (बिना नमक का) व्रत रखा जाता है। इस व्रत में उदयव्यापिनी चतुर्दशी तिथि ली जाती है। यदि इसमें पूर्णिमा का समायोग हो तो इसका महत्व और अधिक हो जाता है – उदये त्रिमुहूर्तापि ग्राह्यानन्तव्रते तिथिः। पौर्णमास्याः समायोगे व्रतं चानान्तकं चरेत्।। आइये आगे जानते हैं कब है भुक्ति-मुक्ति दायिनी अनंत चतुर्दशी व्रत, क्या है इसका माहात्म्य, पूजा विधि, शुभ मुहूर्त एवं कथा।

अनन्त चतुर्दशी माहात्म्य
भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को सम्पन्न होने वाले इस व्रत के माहात्म्य के बारे में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया था। जब युधिष्ठिर अपने भाइयों एवं द्रौपदी के साथ वनवास में रहकर अनेकों कष्ट उठा रहे थे तब श्रीकृष्ण ने पाण्डवों को कष्ट से छुटकारे के लिए अनन्त व्रत करने के लिए कहा था। जिसके प्रभाव से वे अपनी खोई हुई सम्पत्ति पुनः प्राप्त कर सुखपूर्वक भोगकर स्वर्ग को गए। इस व्रत के अनुष्ठान से भुक्ति और मुक्ति दोनों की प्राप्ति होती है।

अनन्त चतुर्दशी पूजा विधि
अनन्त चतुर्दशी व्रत के दिन व्रती को चाहिए कि पक्वान्न का नैवेद्य लेकर किसी पवित्र नदी या सरोवर के तट पर जाये और वहाँ स्नान के अनन्तर ‘ममाखिलपापक्षयपूर्वकशुभफलवृद्धये श्रीमदनन्तप्रीतिकामनया अनन्तव्रतमहं करिष्ये’ मन्त्र से व्रत का संकल्प करके तट की भूमि को गोबर से लीपकर शुद्ध करके कलश स्थापन कर उसकी पूजा करे। इसके बाद कलश पर शेषशायी भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र रखकर उसके सामने चौदह गांठ वाला अनन्त सूत्र रखे। तत्पश्चात ‘ॐ अनन्ताय नमः’ नाममंत्र से भगवान विष्णु सहित अनन्त सूत्र का षोडशोपचार पूजन करे और अनन्त व्रत की कथा सुने। पूजन के पश्चात अनन्त सूत्र को निम्नलिखित मन्त्र को पढ़ते हुए बाँध लें:
अनन्तसंसारमहासमुद्रे मग्नान् समभ्युद्धर वासुदेव। अनन्तरूपे विनियोजितात्मा ह्यनन्तरूपाय नमो नमस्ते।।
अनन्त सूत्र बाँधने के बाद ब्राह्मण को नैवेद्य और दक्षिणा देकर स्वयं नैवेद्य ग्रहण करें।

अनन्त चतुर्दशी मुहूर्त
इस वर्ष अनन्त चतुर्दशी व्रत शुक्रवार, 09 सितम्बर 2022 को है। चतुर्दशी तिथि का आरम्भ गुरुवार, 08 सितम्बर 2022 को रात्रि 09 बजकर 03 मिनट पर होगा और अंत शुक्रवार, 09 सितम्बर 2022 को शाम 06 बजकर 18 मिनट पर होगा।

अनन्त चतुर्दशी कथा
अनन्त चतुर्दशी की कथा के अनुसार प्राचीन काल में सुमन्तु नामक मुनि रहते थे। उनकी एक कन्या थी जिसका नाम शीला था जो अपने नाम के ही अनुरूप बहुत सुशील थी। नियत समय पर सुमन्तु ने उसका विवाह कौण्डिन्य मुनि के साथ किया। शीला ने अनन्त चतुर्दशी का व्रत और पूजन करके अनन्त सूत्र को अपने बाएं हाँथ में बाँध लिया। भगवान अनन्त के आशीर्वाद से शीला और कौण्डिन्य मुनि के घर में सब प्रकार की सुख-सुविधायें थीं और वो दोनों अपना जीवन सुख से व्यतीत करने लगे। दुर्भाग्यवश एक दिन किसी बात पर क्रोधित होकर कौण्डिन्य मुनि ने शीला के हाँथ में बँधा हुआ अनन्त सूत्र तोड़कर आग में डाल दिया। इससे उनका सब वैभव नष्ट हो गया और वे दुःखी रहने लगे। एक दिन अत्यंत दुःखी होकर कौण्डिन्य मुनि वन में चले गए जहाँ वे सभी जीव-जंतुओं, वृक्षों, लताओं आदि से भगवान अनन्त का पता पूछते। उनकी इस अर्धविक्षिप्त अवस्था को देखकर करुणा के सागर भगवान अनन्त ने एक वृद्ध ब्राह्मण के रूप में अपना दर्शन देकर उनसे अनन्त व्रत करने को कहा। तब घर लौटकर कौण्डिन्य मुनि ने शीला सहित अनन्त व्रत किया जिसके प्रभाव से भगवान अनन्त की कृपा प्राप्त कर वे पुनः सुख और समृद्धि से रहने लगे।

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