Kamada Ekadashi 2021: मनोकामना पूर्ति के लिए करें कामदा एकादशी व्रत, जानें इसका माहात्म्य, पूजा विधि, शुभ मुहूर्त एवं कथा

सनातन धर्म में एकादशी व्रत का अत्यधिक महत्व है। कई धार्मिक ग्रंथों और पुराणों में इसका उल्लेख है। भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय यह व्रत माह के दोनों पक्षों की एकादशी तिथियों को किया जाता है। चैत्र शुक्ल पक्ष एकादशी को कामदा एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस वर्ष यह तिथि शुक्रवार, 23 अप्रैल 2021 को पड़ रही है। आइये जानते हैं कामदा एकादशी (Kamada Ekadashi 2021) का क्या है माहात्म्य, पूजा विधि, शुभ मुहूर्त एवं कथा।

कामदा एकादशी माहात्म्य
कामदा एकादशी अपने नाम के अनुरूप ही फल देने वाली है। इस व्रत से भगवान विष्णु की कृपा से सकल कामनाओं की पूर्ति एवं सभी कार्यों में सिद्धि मिलती है। सुहागिन स्त्रियों को यह व्रत अखंड सौभाग्य देता है तथा कुंवारी कन्याओं के विवाह में आ रही बाधा को दूर करता है। घर में सुख, शांति और समृद्धि तथा अभीष्ट सिद्धि के लिए यह व्रत सर्वोत्तम माना गया है। कामदा एकादशी के प्रभाव से राक्षस योनि से भी छुटकारा मिल जाता है।

कामदा एकादशी पूजा विधि
एकादशी के दिन व्रती को प्रातः स्‍नानादि नित्यकर्म से निवृत्त होकर “मामाखिलपापक्षयपूर्वक श्रीपरमेश्वरप्रीतिकामनया कामदैकादशीव्रतं करिष्ये” मंत्र से व्रत का संकल्‍प लेकर पूर्ण श्रद्धा एवं भक्ति से भगवान विष्णु का षोडशोपचार पूजन करना चाहिए। फिर दिनभर भगवन्नाम का जाप और स्मरण करते रहे। रात्रि में एकादशी की कथा का श्रवण एवं विष्णु सहस्रनाम आदि स्त्रोत्र का पाठ करते हुए रात्रि जागरण करना चाहिए। अगले दिन प्रातः फिर से पूजन के उपरांत द्वादशी में पारण करे।

कामदा एकादशी शुभ मुहूर्त
व्रत का दिन – कामदा एकादशी शुक्रवार, 23 अप्रैल 2021 को है
एकादशी तिथि का आरंभ – गुरुवार, 22 अप्रैल 2021 को रात्रि 11 बजकर 36 मिनट से
एकादशी तिथि का अंत – शुक्रवार, 23 अप्रैल 2021 को रात्रि 09 बजकर 48 मिनट पर
एकादशी पारण का समय – शनिवार, 24 अप्रैल 2021 को सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक

कामदा एकादशी कथा
कामदा एकादशी की कथा के अनुसार प्राचीन काल में ऐश्वर्य संपन्न भोगीपुर राज्य में पुण्डरीक नामक राजा राज्य करते थे। उनके यहाँ ललित एवं ललिता नाम का एक गन्धर्व जोड़ा रहता था जो गायन, वादन और नृत्य में बहुत प्रवीण था। एक बार ललित श्रापवश राक्षस बन गया। इसपर उसकी पत्नी ललिता बहुत दुखी हुई और ऋष्यशृंग ऋषि की आज्ञा से चैत्र शुक्ल एकादशी का व्रत किया जिसके प्रभाव से अपने पति को पूर्वरूप में प्राप्त किया।

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