पुत्र-पौत्रों की लम्बी आयु और अच्छे स्वास्थ्य के लिए करें जीवत्पुत्रिका व्रत, जानें माहात्म्य, पूजा विधि, शुभ मुहूर्त एवं कथा

Published by Ved Shri Published: September 17, 2022

आश्विन मास कृष्ण पक्ष अष्टमी को जीवत्पुत्रिका व्रत किया जाता है। इसे जितिया या जीमूतवाहन व्रत के नाम से भी जाना जाता है। पुत्र प्राप्ति, पुत्र-पौत्रों की लम्बी आयु और अच्छे स्वास्थ्य के लिए इस व्रत की खास मान्यता है। इस व्रत को बहुत ही श्रद्धा और समर्पण से किया जाता है। इसे सधवा या विधवा कोई भी स्त्री कर सकती है। यहाँ तक कि इसकी कथा में दूसरे प्राणियों यथा पशु और पक्षियों द्वारा किये जानें का उल्लेख है। आइए जानते हैं कब है जीवत्पुत्रिका व्रत, क्या है इसका माहात्म्य, पूजा विधि, शुभ मुहूर्त एवं कथा।

जीवत्पुत्रिका व्रत माहात्म्य
ऐसी मान्यता है कि जीवत्पुत्रिका व्रत के माहात्म्य, विधान और कथा के विषय में स्वयं भगवान शंकर ने माता पार्वती को बताया था। इस व्रत के प्रभाव से सौभाग्यशालिनी नारियों के पुत्र जीवित और चिरंजीवी रहते हैं। उनके पुत्र और पौत्र लम्बी आयु और उत्तम स्वास्थ्य प्राप्त करते हैं। जो स्त्रियाँ इस दिन उपवास और विधिपूर्वक पूजन कर कथा सुनती हैं और ब्राह्मणों को दक्षिणा देती हैं उनके सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं और वंश की वृद्धि होती है तथा वे अपने पुत्रों के साथ सुखपूर्वक जीवन बिताकर अंत में विष्णुलोक को जाती हैं – अन्ते च भजते देवि विष्णुलोकं सनातनम्।

जीवत्पुत्रिका व्रत विधि
व्रत से एक दिन पहले एक समय भोजन करें और व्रत के दिन प्रातः स्नान के बाद व्रत का संकल्प लें और दिनभर निराहार रहें। घर के आँगन को गाय के गोबर से लीपकर शुद्ध कर लें और वहीं पर जमीन खोदकर एक छोटा सा तालाब बना लें तथा तालाब के पास पाकड़ की एक डाल लाकर खड़ा दें। प्रदोष काल में वहां पर जीमूतवाहन की कुशनिर्मित मूर्ति स्थापित कर पीली और लाल रुई से उसे सजाकर धूप, दीप, अक्षत, पुष्प और नैवेद्य से उसका पूजन करें। मिट्टी और गोबर से मादा चील और सियारिन की मूर्ति बनाकर उनके माथे को सिन्दूर से विभूषित करें। अपने वंश की वृद्धि और प्रगति के लिए कामना करते हुए बांस के पत्रों से पूजन करें। इसके बाद जीवत्पुत्रिका व्रत की कथा सुनें।

जीवत्पुत्रिका व्रत मुहूर्त
कई जगह प्रदोषव्यापिनी अष्टमी तिथि भी ग्रहण की जाती है पर व्रत के लिए सूर्योदय व्यापिनी अष्टमी तिथि को लेना श्रेयस्कर माना गया है – आश्विने कृष्णपक्षे तु या भवेदष्टमी तिथिः। शालिवाहनराजस्य पुत्रं जीमूतवाहनम्।।
इस बार जीवत्पुत्रिका व्रत रविवार, 18 सितम्बर 2022 को है। अष्टमी तिथि का आरम्भ शनिवार, 17 सितम्बर 2022 को दोपहर 02 बजकर 15 मिनट से होगा और अंत रविवार, 18 सितम्बर 2022 को सायं 04 बजकर 33 मिनट पर होगा। व्रत का पारण अगले दिन सोमवार, 19 सितम्बर 2022 को होगा।

जीवत्पुत्रिका व्रत कथा
जीवत्पुत्रिका व्रत की कथा के अनुसार दक्षिणापथ में समुद्र के निकट नर्मदा के तट पर कांचनावती नाम का राज्य था जिसके राजा मलयकेतु थे। नदी के किनारे एक पाकड़ का पेड़ था जिस पर एक मादा चील रहती थी उसी पेड़ की जड़ की कोटर में एक सियारिन भी रहती थी। दोनों के बीच मैत्री थी। संयोगवश नदी किनारे नगर की स्त्रियाँ जीवत्पुत्रिका व्रत कर रही थीं। उनसे व्रत के माहात्म्य को जानकर चील और सियारिन ने भी व्रत का संकल्प किया परन्तु सियारिन भूख सहन नहीं कर सकी और मांस खा लिया जिससे उसका व्रत भंग हो गया। कुछ समय बाद चील ने महामंत्री बुद्धिसेन की पत्नी बनने और सियारिन ने महाराज मलयकेतु की रानी बनने का संकल्प लेकर दोनों ने अपने प्राण त्याग दिए। अगले जन्म में दोनों बहनें हुई, चील का नाम शीलवती और सियारिन का नाम कर्पूरावती रखा गया। शीलवती का विवाह महामंत्री बुद्धिसेन से हुआ तो वहीं कर्पूरावती का महाराज मलयकेतु से। दोनों के सात-सात बच्चे हुए पर कर्पूरावती के सारे बच्चे एक-एक करके मृत्यु को प्राप्त हो गए। इससे वह शीलवती से द्वेष रखने लगी। द्वेषवश उसने शीलवती के सातों पुत्रों के सर कटवाकर बांस की सात डलियों में डालकर उसे भेजा पर इधर जीमूतवाहन ने उनकी गर्दन जोड़ दी और बांस की डलियों में सर की जगह ताल के फल बन गए। कर्पूरावती यह सुनकर क्रोध से शीलवती को मारने गई लेकिन उससे मिलकर उसे अपने पूर्वजन्म की याद हो आई और ग्लानि और पश्चाताप से उसका प्राण निकल गए। राजा भी सबकुछ जानकर अपने महामंत्री को राज्य सौंपकर तप करने वन को चले गए। शीलवती अपने पति और पुत्रों के साथ प्रसन्नतापूर्वक रहने लगी। जीवत्पुत्रिका व्रत के प्रभाव से उसके सारे मनोरथ पूर्ण हो गए।

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