कार्तिक पूर्णिमा (Karthik Purnima) को पवित्र नदियों और सरोवरों में स्नान और दीपदान का अत्यधिक महत्व (Importance of Karthik Purnima) है। इस साल कार्तिक पूर्णिमा की शुरुआत 29 नवंबर की रात 12 बजकर 48 मिनट पर कृत्तिका नक्षत्र में हो रही है जो 30 नवंबर की दोपहर 2:59 तक रहेगी। अतः कार्तिक पूर्णिमा सोमवार, 30 नवंबर 2020 को मनाई जाएगी। आइये जानते हैं इसका माहात्म्य और पूजा विधि।
कार्तिक पूर्णिमा का माहात्म्य
कार्तिक पूर्णिमा महापुनीत पर्व माना गया है। इस दिन किये गए स्नान, दान, होम, यज्ञादि का अनंत फल होता है। इसी दिन सायंकाल में मत्स्यावतार हुआ था। इस कारण इसमें दिए गए दानादि का दस यज्ञों के समान फल होता है। जिसका उल्लेख पद्मपुराण में नीचे दिया गया है।
वरान् दत्त्वा यतो विष्णुर्मत्स्यरुपोऽभवत् ततः।
तस्यां दत्तं हुतं जप्तं दशयज्ञफलं स्मृतम्।।
कार्तिक पूर्णिमा पूजा विधि
संध्या के समय त्रिपुरोत्सव करके “कीटाः पतंगा मश्काश्च वृक्षे जले स्थले ये विचरन्ति जीवाः। दृष्ट्वा प्रदीपं न हि जन्मभागिनस्ते मुक्तरूपा हि भवन्ति तत्र।।” मंत्र से दीपदान करें। माना जाता है की ऐसा करने से मनुष्य पुनर्जन्म के चक्कर से मुक्त हो जाता है। चंद्रोदय के समय छहों कृत्तिकाओं (शिवा, सम्भूति, प्रीति, संतति, अनुसूया और क्षमा) और कार्तिकेय, खड्गी, वरुण, हुताशन और बालियुक्त धान्य का पूजन करें। मत्स्यपुराण के अनुसार यदि कोई इस दिन नक्तव्रत करके वृषदान करता है तो उसे शिवपद की प्राप्ति होती है।
कार्तिक्यां तु वृषोत्सर्गं कृत्वा नक्तं समाचरेत्।
शैवं पदमवाप्नोति शैवव्रतमिदं स्मृतम्।।
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