हर वर्ष आषाढ़ शुक्ल पक्ष द्वितीया को गुण्डिचा महोत्सव मनाया जाता है। इस दिन बलभद्र और सुभद्रा सहित भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा निकाली जाती है। भगवान जगन्नाथ जी की द्वादश यात्राओं में गुण्डिचा यात्रा मुख्य मानी जाती है। गुण्डिचा मंदिर में ही विश्वकर्मा ने भगवान जगन्नाथ जी, बलभद्र जी और सुभद्रा जी की दारुप्रतिमाएँ बनायीं थीं जिसे महाराज इन्द्रद्युम्न ने प्रतिष्ठित किया था। इस वर्ष यह महोत्सव सोमवार, 12 जुलाई 2021 को मनाया जायेगा। आइये जाने इसका माहात्म्य और पूजा विधि।
रथयात्रा का माहात्म्य
रथ पर विराजमान भगवान जगन्नाथ जी का जो लोग भक्तिपूर्वक दर्शन करते हैं उनको भगवान के धाम की प्राप्ति होती है और करोड़ों जन्मों के पापों का नाश होता है। जो भगवान के आगे जयघोष करते हुए उनकी स्तुति करते हैं वे माता के गर्भ में निवास करने का दुःख कभी नहीं भोगते। जो उत्तम पुरुष वहां नृत्य करते हैं वे मोक्ष प्राप्त कर लेते हैं। जो मनुष्य परम पवित्र सहस्रनाम का पाठ करते हुए रथ की प्रदक्षिणा करते हैं, वे भगवान विष्णु के समान होकर वैकुण्ठ धाम में निवास करते हैं। रथयात्रा के समय भगवान श्रीकृष्ण के निमित्त किया गया थोड़ा सा भी दान मेरुदान के समान अक्षय फल देनेवाला होता है।
घर पर उत्सव मनाने की विधि
यद्यपि यह उत्सव रथयात्रा में शामिल होकर मनाया जाता है लेकिन जो श्रद्धालु शामिल ना हो सकें वे अपने मोहल्ले या घर पर ही इसे हर्षोल्लास के साथ मना सकते हैं। इस दिन अरुणोदय के समय भगवान की पूजा करें, विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें और भगवान से हाँथ जोड़कर यात्रा के लिए निवेदन करें। श्रीकृष्ण, बलभद्र और सुभद्रा को भाँति-भाँति के वस्त्र और मालाओं से सुशोभित करें और उन्हें सुन्दर एवं गद्देदार आसान पर बैठाकर कृष्णागरु की धूप जलाएं तथा घण्टे, घड़ियाल, झांझ, करताल आदि वाद्य यंत्र के स्वर के साथ विजययात्रा का उत्सव मनाएं और जयकारे लगायें तथा “जितं ते पुण्डरीकाक्ष” का उच्च स्वर से जाप करें। जो भी व्यक्ति भक्तिभाव से ऐसा करता है वह भगवान विष्णु की कृपा से गुण्डिचा महोत्सव के फलस्वरूप वैकुण्ठ धाम में जाता है।