Devshayani Ekadashi 2023: जानें कब है देवशयनी एकादशी, क्या है इसका माहात्म्य, पूजा विधि, शुभ मुहूर्त एवं कथा

Published by Ved Shri Last Updated: June 28, 2023

आषाढ़ शुक्ल एकादशी का हिन्दू धर्म में अत्यधिक महत्व माना गया है। इसे देवशयनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस दिन व्रत करने का विशेष महत्व होता है। इस वर्ष यह शुभ तिथि गुरुवार, 29 जून 2023 को पड़ रही है। आइये जानते हैं देवशयनी एकादशी (Devshayani Ekadashi 2023) का माहात्म्य, पूजा विधि, शुभ मुहूर्त एवं कथा।

देवशयनी एकादशी माहात्म्य
देवशयनी एकादशी से चातुर्मास्य का आरम्भ माना जाता है जो कार्तिक शुक्ल एकादशी तक रहता है। मान्यता है कि इस दौरान भगवान विष्णु शयन करते हैं और इसीलिए इन चार मेसन में मांगलिक कार्य वर्जित रहते हैं। भक्त गण चातुर्मास में श्रीहरि विष्णु की नित्य कृपा प्राप्त हेतु अनेक प्रकार के व्रत और नियम का पालन करते हैं। ऐसा माना जाता है कि देवशयनी एकादशी के व्रत से भक्तों की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और उनको परमपद की प्राप्ति होती है।

देवशयनी एकादशी पूजा विधि
देवशयनी एकादशी के दिन व्रती को प्रातः स्‍नानादि के बाद एकादशी व्रत का संकल्‍प लेना चाहिए। तत्पश्चात पूरी श्रद्धा और भक्ति से श्रीहरि विष्णु की सोने, चाँदी, तांबा, पीतल की मूर्ति या कागज के चित्र बनवाकर उसका विधि-विधान से षोडशोपचार पूजन करना चाहिए। रात्रि के समय भगवान के विग्रह को पीताम्बर से विभूषित करके सफेद चादर से ढके हुए गद्दे-तकिया वाले पलंग पर “सुप्ते त्वयि जगन्नाथे जगत् सुप्तं भवेदिदम्। विबुद्धे च विबुध्येत प्रसन्नो मे भवाव्यय।।” से प्रार्थना करके शयन करावें। तदुपरांत रात्रि में जागरण कर अगले दिन द्वादशी को पूजनोपरांत पारण करें।

देवशयनी एकादशी शुभ मुहूर्त
व्रत का दिन – देवशयनी एकादशी गुरुवार, 29 जून 2023 को है
एकादशी तिथि का आरंभ – गुरुवार, 29 जून 2023 को प्रातः 03 बजकर 18 मिनट से
एकादशी तिथि का अंत – शुक्रवार, 30 जून 2023 को प्रातः 02 बजकर 42 मिनट पर
एकादशी पारण का समय – शुक्रवार, 30 जून 2023 को सूर्योदय से सूर्यास्त तक

देवशयनी एकादशी कथा
देवशयनी एकादशी व्रत की कथा के अनुसार सतयुग में मांधाता नाम के चक्रवर्ती राजा राज्य करते थे जो बहुत ही धर्मपरायण थे और उनके राज्य में प्रजा सब प्रकार से खुशहाल थी। एक बार उनके राज्य में लगातार तीन वर्ष तक बारिश नहीं होने की वजह से भयंकर अकाल पड़ गया जिससे चारों ओर हाहाकार मच गया। राजा इस अकाल और प्रजा के दुःख से द्रवित होकर इससे मुक्ति के लिए ब्रह्माजी के पुत्र अंगिरा ऋषि के पास गए। महर्षि अंगिरा ने तब राजा मांधाता को उपाय बताते हुए कहा कि आप आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत करें, इसके प्रताप से अवश्य ही वर्षा होगी। ऋषि के आदेशानुसार राजा ने राज्य की जनता के साथ देवशयनी एकादशी का विधिपूर्वक व्रत किया, जिससे उत्तम वर्षा हुई और अकाल का अंत हुआ।

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