वैशाख शुक्ल पक्ष तृतीया को अक्षय तृतीया का पर्व मनाया जाता है। यह आखातीज और परशुराम जयंती के नाम से प्रसिद्द है। इस दिन नर-नारायण एवं हयग्रीव के भी अवतार हुए थे और इसी तिथि को त्रेतायुग का आरंभ हुआ था जिस वजह से इसे युगादि तिथि भी कहते हैं। इस बहुश्रुत एवं बहुमान्य पर्व का मत्स्य, नारद, भविष्य आदि पुराणों में उल्लेख किया गया है और कई कथाएं हैं। इस वर्ष यह परम पुण्यदायी स्वयं सिद्ध तिथि (Akshaya Tritiya 2021) शुक्रवार, 14 मई 2021 को पड़ रही है। आइये आगे जानते हैं क्या है इसका माहात्म्य और कैसे मनाएं इस पर्व को।
अक्षय तृतीया का माहात्म्य
अक्षय का शाब्दिक अर्थ है जिसका कभी नाश न हो अर्थात् जो स्थायी रहे। “न क्षयः इति अक्षय” जिसका क्षय नहीं होता ऐसी अक्षय तृतीया स्वयं सिद्ध अभिजित् मुहूर्त है। यह स्वयं में समाहित अनंत सामर्थ्य, अखंड आनंद, अक्षय ऊर्जा के साथ दिव्य संभावनाओं को सिद्ध एवं साकार करने एवं अक्षय पुण्यफल की प्राप्ति का पर्व है। इस दिन सूर्य एवं चंद्रमा दोनों ही अपनी उच्च राशि में स्थित होते हैं अतः अभीष्ट सिद्धि और कामना पूर्ति के लिए यह उत्तम तिथि होती है। यह मनुष्य को विपत्ति और विपन्नता से उबारने वाली एवं दैहिक, दैविक, भौतिक त्रिविध तापों से शांति दिलाने वाली तिथि है। इस दिन किये गए दान, स्नान, जप, तप, हवन आदि का अनंत एवं अक्षय फल मिलता है “स्नात्वा हुत्वा च दत्त्वा च जप्त्वानन्तफलं लभेत्।”
क्या करें अक्षय तृतीया के दिन
इस दिन जातक को चाहिए कि प्रातः स्नानादि से निवृत्त होकर “ममाखिलपापक्षयपूर्वक सकलशुभफलप्राप्तये भगवत्प्रीतिकामनया देवत्रयपूजनमहं करिष्ये” से संकल्प लेकर भगवान का यथाविधि षोडशोपचार पूजन करे। नैवेद्य में नर-नारायण के निमित्त सत्तू, परशुराम के निमित्त ककड़ी और हयग्रीव के निमित्त भीगी हुई चने की दाल अर्पित करे। हो सके तो पवित्र नदी, सरोवर या समुद्र में स्नान करे और उपवास रखे। पितरों की प्रसन्नता के लिए जलपूर्ण कलश, पंखा, पादुका, छाता, सत्तू, फल, मिष्ठान आदि का दान करे। इस दिन वस्त्र, शस्त्र और आभूषणादि का क्रय एवं धारण करना उत्तम माना गया है। नवीन कार्य, मकान, दुकान की स्थापना के लिए भी यह उत्तम दिन है। अबूझ मुहूर्त होने के कारण इस दिन विवाहादि अन्य सभी मांगलिक कार्य संपन्न किये जाते हैं।