हर वर्ष पौष पूर्णिमा के साथ ही माघ स्नान शुरू हो जाता है। भारतीय संवत्सर के ग्यारहवें चन्द्रमास को माघ कहते हैं। धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से इस माह का बहुत ही महत्व है। शास्त्रों के अनुसार माघ में ब्रह्म मुहूर्त में जागने और सूर्योदय से पूर्व स्नान करने का अत्यधिक महत्त्व है। पवित्र नदियों और सरोवरों में स्नान का और भी ज्यादा महत्व है। कई लोग इस पूरे महीने नदियों के तट पर निवास करते हैं जिसे कल्पवास कहा जाता है। मान्यता है की इस महीने में किये गए दान-पुण्य, निर्बलों, रोगियों, आदि की सेवा करने से कई गुना शुभ फल प्राप्त होते हैं। आइये जानते हैं इस वर्ष कब से शुरू हो रहा माघ स्नान (Magh Snan 2021) क्या है इसका माहात्म्य और कथा तथा इस महीने के धार्मिक कृत्य।
कब शुरू हो रहा माघ स्नान
इस वर्ष पौष पूर्णिमा गुरुवार, 28 जनवरी 2021 को है और इसी दिन से माघ स्नान प्रारम्भ हो रहा है जो 27 फरवरी 2021 को माघ पूर्णिमा (माघी पूर्णिमा) पर समाप्त होगा। इस साल पौष पूर्णिमा पर बहुत अच्छा संयोग बन रहा है। गुरु-पुष्य योग, सर्वार्थ सिद्धि योग और अमृत सिद्धि योग मिलकर इस दिन को बहुत ही शुभ बना रहे हैं।
माघ स्नान का माहात्म्य
माघ स्नान के माहात्म्य का वर्णन करते हुए पद्मपुराण के उत्तर खण्ड में कहा गया है कि व्रत, दान और तपस्या से भी भगवान श्रीहरि को उतनी प्रसन्नता नहीं मिलती जितनी कि माघ के महीने में स्नान मात्र से मिलती है। इसलिए सभी पापों से मुक्त होने और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने के लिए प्रत्येक मनुष्य को माघ स्नान करना चाहिए। माना जाता है की इस माह में जो कोई भी व्यक्ति पूरी श्रद्धा से शीतल जल के भीतर डुबकी लगाता है उसे भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और वह पापमुक्त होकर स्वर्ग लोक को जाता है:
माघे निमग्नाः सलिले सुशीते विमुक्तपापास्त्रिदिवं प्रयान्ति।
माघ माह के महत्व का बखान करते हुए महान कवि संत तुलसीदास जी ने रामचरित मानस के बालकाण्ड में लिखा है:
माघ मकरगत रबि जब होई। तीरथपतिहिं आव सब कोई।।
देव दनुज किंनर नर श्रेनी। सादर मज्जहिं सकल त्रिबेनीं।।
माघ स्नान की कथा
पद्मपुराण में वर्णित माघ स्नान की कथा के अनुसार प्राचीन काल में नर्मदा नदी के तट पर सुब्रत नाम के एक विद्वान ब्राह्मण रहते थे। विद्वान होते हुए भी उन्होंनें धर्म-कर्म पर ध्यान ना देकर सिर्फ धन कमाने में लगे रहे। पर जब एक दिन उनके जीवन भर के कमाये धन को किसी चोर ने चुरा लिया तब जाकर उन्हें धन की नश्वरता का ज्ञान हुआ और अपने कृत्यों पर पश्चाताप करने लगे। भगवान की कृपा से उन्हें एक आधा-अधूरा मंत्र याद था जिसका सार यह था कि माघ स्नान करने से जीवन का उद्धार हो सकता है। इस मंत्र पर अमल करते हुए उन्होनें लगातार 9 दिनों तक नर्मदा में स्नान किया और दसवें दिन उनकी मृत्यु हो गई और फिर उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति हुई। एक कथा यह भी है की माघ स्नान से ही प्रतिष्ठानपुरी के राजा पुरुरवा को अपनी कुरुपता से मुक्ति मिली थी और इसी स्नान से ही इन्द्र को गौतम ऋषि के श्राप से मुक्ति मिली थी।
माघ माह के कृत्य
माघ माह का सबसे बड़ा कृत्य तो स्नान माना गया है। इसके अलावा यह भी कहा जाता है की माघ स्नान के दौरान जो कोई भी ब्राह्मणों को तिल दान करता है, उसे नरक का दर्शन नहीं होता। इस महीने में जो व्यक्ति केवल एक ही समय का भोजन करता है वह अगले जन्म में धनाढ्य कुल में पैदा होता है। जो जातक इस माह की द्वादशी को उपवास करता है उसे राजसूय यज्ञ के बराबर पुण्य की प्राप्ति होती है। अतः माघ महीने में सूर्योदय से पूर्व स्नान, तिल का दान और द्वादशी को उपवास एवं सत्संग जैसे धार्मिक कृत्य जरूर करें।