आम तौर पर हम सभी लोग धार्मिक कृत्य और अनुष्ठान करते रहते हैं। हममें से कुछ लोग तो नित्य अग्निहोत्र भी करते होंगे। पर क्या आप जानते हैं कि नैमित्तिक कृत्यों के अतिरिक्त विशेष अनुष्ठान, यज्ञ या हवन के लिए अग्निवास का देखा जाना कितना जरुरी है। शास्त्रीय मान्यता है की किसी कार्य विशेष के लिए संकल्पित पूजा, यज्ञ, हवन अनुष्ठान आदि में अग्निवास का विचार करना बहुत ही जरुरी होता है। अन्यथा उस अनुष्ठान से लाभ की जगह हानि हो सकती है। आइये आगे जानते हैं कैसे की जाती है अग्निवास की गणना, क्या है इसका फल और यज्ञ या हवन में क्या है इसका महत्व।
क्या है अग्निवास
शास्त्रों के अनुसार यह कहा गया है की दिन और तिथि के हिसाब से अग्नि अलग-अलग लोकों में वास करती है। उसके वास स्थान से यह पता चलता है की उस दिन या तिथि में हवन करना उचित है या नहीं अर्थात् उसका परिणाम सकारात्मक होगा या नकारात्मक।
कैसे करें अग्निवास की गणना
सबसे पहले अग्निवास की गणना के लिए तिथि और दिन का मान जानना जरुरी है। तिथि की गणना शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को 1 मानकर की जाती है। इस प्रकार पूर्णिमा का मान 15 होगा तथा अमावस्या का मान 30 होगा। वहीं दिन की गणना रविवार से शुरू होगी अर्थात् रविवार का मान 1 होगा और शनिवार का मान 7 होगा। अब जिस दिन हवन करना हो उस दिन की तिथि एवं वार के मान को जोड़कर उसमें 1 और जोड़ें। इसके बाद प्राप्त योग को 4 से भाग दें। यदि शेष 0 या 3 आये तो अग्निवास पृथ्वी पर जानें। यदि 1 शेष आये तो अग्निवास आकाश में जानें। वहीं यदि शेष 2 आये तो अग्निवास पाताल में जानें।
उदाहरण के लिए सोमवार, श्रावण कृष्ण पंचमी को अग्निवास देखना है तो कृष्ण पंचमी का मान 20 और सोमवार का मान 2 होगा। अतः 20 + 2 = 22 होगा इसमें एक और जोड़ें 22 + 1 = 23 अब प्राप्त योग को 4 से भाग दें 23 / 4 शेष 3 आया जो बताता है की अग्निवास पृथ्वी पर है।
अग्निवास का फल
अब आइये जानते हैं अग्निवास का महत्व क्या है। तीनों लोकों में अग्निवास का फल अलग-अलग होता है और इसी के फलस्वरुप अग्निवास का महत्व इंगित होता है।
– पृथ्वी पर अग्निवास सुखकारी माना गया है
– स्वर्ग में अग्निवास अशुभ और प्राण नाशक माना गया है एवं
– पाताल में अग्निवास धन नाशक माना जाता है
इसलिए हमेशा ही हवन करना तब उचित है जब अग्निवास पृथ्वी पर हो।