मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष एकादशी को गीता जयंती मनाई जाती है। माना जाता है की इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था। गीता के उपदेश से ही अर्जुन का मोह भंग हुआ और वो अपने कर्मपथ पर चलकर महाभारत में विजयश्री प्राप्त किये। मोह का क्षय करने के कारण ही इस एकादशी को मोक्षदा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन गीता, श्रीकृष्ण, व्यास की पूजा करके उत्सव मनाना चाहिए। गीतापाठ करें या गीता पर व्याख्यान सुनें और यदि संभव हो सके तो गीता की झाँकी भी निकालें। इस साल गीता जयंती शुक्रवार, 25 दिसंबर 2020 (Geeta Jayanti 2020 Date) को मनाई जाएगी। आइये जानते हैं गीता का क्या है माहात्म्य और आज के सन्दर्भ में क्यों है ज्यादा प्रासंगिक।
गीता का माहात्म्य
वैसे तो श्रीमद्भगवद्गीता की महिमा का बखान करने का किसी में सामर्थ्य नहीं है क्योंकि यह योगेश्वर श्रीकृष्ण द्वारा वर्णित एक अद्भुत और रहस्यमय ग्रन्थ है। गीता सिर्फ एक धार्मिक ग्रंथ ही नहीं बल्कि एक जीवन ग्रंथ भी है जो हमें न केवल पुरुषार्थ बल्कि धर्म, कर्म, अध्यात्म, ब्रह्म, जीव जैसे सभी चीजों का ज्ञान देती है। शायद यही वजह है की आज हजारों साल बाद भी यह हमारे बीच प्रासंगिक है। भगवद्गीता को गीतोपनिषद् भी कहा जाता है क्योंकि समस्त वैदिक ग्रंथों और उपनिषदों का सार इसमें समाया हुआ है। श्रीगीता जी के माहात्म्य का वर्णन स्वयं श्रीकृष्ण भगवान ने निम्न श्लोकों से किया है:
य इमं परमं गुह्यं मद्भक्तेष्वभिधास्यति। भक्तिं मयि परां कृत्वा मामेवैश्यत्यशंशयः।।
न च तस्मान्मनुष्येषु कश्चिन्मे प्रियकृत्तमः। भविता न च मे तस्मादन्यः प्रियतरो भुवि।।
अध्येष्यते च य इमं धर्म्यं संवादमावयोः। ज्ञानयज्ञेन तेनाहमिष्टः स्यामिति मे मतिः।।
श्रद्धावाननसूयश्च शृणुयादपि यो नरः। सोऽपि मुक्तः शुभांल्लोकान्प्राप्नुयात्पुण्यकर्मणाम।।
उपरोक्त श्लोकों में भगवान कहते हैं जो व्यक्ति मुझमें चित्त होकर गीता को मेरे भक्तों के बीच कहेगा वो निःसंदेह मुझको ही प्राप्त होगा। उससे बढ़कर मेरा प्रिय कार्य करने वाला कोई नही होगा तथा सम्पूर्ण पृथ्वी पर उससे बढ़कर मुझे और कोई प्रिय नहीं होगा। जो व्यक्ति इस धर्ममय शास्त्र को पढ़ेगा उसके द्वारा भी मैं ज्ञानयज्ञ से पूजित होऊंगा। जो व्यक्ति श्रद्धायुक्त होकर इसका श्रवण करेगा वो भी पापमुक्त होकर श्रेष्ठ लोकों को प्राप्त होगा। अतः ऐसा मानने में कोई संकोच नहीं की जो व्यक्ति गीता पाठ या श्रवण या प्रचार करता है वो भगवान श्रीकृष्ण की कृपा प्राप्त कर सद्गति पाता है।
आज के समय में गीता की प्रासंगिकता
जगत के अलौकिक तेज से गीता का ज्ञान सर्वप्रथम सूर्य देव को प्राप्त हुआ जिसे उन्होंने वैवस्वत मनु को बताया और मनु ने इसे इक्ष्वाकु को बताया। बाद में इसका ज्ञान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कुरुक्षेत्र में विस्तारपूर्वक दिया। श्रीमद्भगवद्गीता सही मायने में भारत और भारतीयता का जीवंत प्रकाश स्तम्भ है। गीता के 18 अध्याय और 700 श्लोकों में भूत, भविष्य और वर्तमान तीनों ही समाहित हैं। इसके एक एक शब्द में सदुपदेश है जिसका पठन, पाठन एवं श्रवण हमें ज्ञानवान बनाता है जीवन को सफल बनाता है। आज के इस भौतिकवादी दौर में गीता की प्रासंगिकता और ज्यादा बढ़ गई है क्योंकि व्यक्ति जीवन के मूल औचित्य को भूलता जा रहा है और अपनी भोगलिप्सा में रत है। वो भूल गया है कि सिर्फ यही एक जीवन नहीं है बल्कि आत्मा तो अजर अमर है। भगवान ने आत्मा के शाश्वत होने की बात निम्न श्लोक में की है:
नैनं छिंदंति शस्त्राणी, नैनं दहति पावकः। न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः।।
आज मनुष्य अकर्मण्यता को सुख मानने लगा है। गीता में भगवान कर्म के लिए ही प्रेरित करते हैं और अर्जुन से कहते हैं कि अगर युद्ध में तुम मारे जाते हो तो स्वर्ग को प्राप्त करोगे और यदि जीतते हो तो पृथ्वी का राज्य भोगोगे अतः दोनों ही स्थिति में तुम युद्ध के लिये निश्चय करके खड़े हो जाओ।
हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गं जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम्। तस्मादुत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चयः।।
वहीं व्यक्ति की अकर्मण्यता में भी आसक्ति न हो और वो कर्मफल की आशा में भी बंधा ना रहे इसलिए भगवान ने गीता में कहा:
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि।।
सही मायनों में गीता भारत के उत्थान से जुड़ी है अतः इसे राष्ट्रीय ग्रन्थ घोषित करना चाहिए। इसी से राष्ट्र का खोया हुआ गौरव पुनः प्राप्त हो सकता है क्योंकि जहाँ धर्म का राज होगा वहीं जय होगी। धर्म की संस्थापना के लिए गीता को भगवान श्रीकृष्ण का स्वरुप मानकर उसी के अनुसार हमें व्यवहार करना होगा क्योंकि भगवान ने कहा है की जब-जब धर्मकी हानि और अधर्मकी वृद्धि होती है, तब-तब ही मैं अपने आपको साकार रूप में प्रकट करता हूँ:
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। अभ्युत्थानमधर्मस्य तदाऽऽत्मानं सृजाम्यहम्।।