गौरी पुत्र गणेश की अतुलनीय कृपा और महत्ता के बारे में तो सब जानते हैं। प्रथम पूज्य देव होने के साथ-साथ ये रिद्धि और सिद्धि के दाता भी हैं। इनकी पूजा से सब तरह के विघ्नों से मुक्ति मिलती है, इसलिए इन्हे विघ्नहर्ता कहते हैं। भगवान गणेश बुद्धि, विद्या और धन संपत्ति के स्वामी हैं। इनका पूजन सभी परेशानियों को दूर कर सर्वसिद्धि दाता हैं। इनके कई स्त्रोत्र और मंत्र प्रचलित हैं पर आज आपको नारद पुराण में वर्णित एक छोटा सा स्त्रोत्र, जिसका हर रोज पूजा में पाठ किया जा सकता है के बारे में बताते हैं। इस स्त्रोत का नाम संकटनाशन गणेश स्तोत्र है जो विद्या, धन, पुत्र और मोक्ष के इच्छुक जातकों के लिए इस कलयुग में वरदान के समान है।
गौरीपुत्र गणेश की अनुपम कृपा पाने के लिए जातक नित्य अपनी पूजा के दौरान गणेश जी की मूर्ति या चित्र के सम्मुख दीप जलाकर नीचे दिए हुए श्रीसंकटनाशनगणेशस्तोत्र का पाठ करें:
प्रणम्य शिरसा देवं गौरीपुत्रं विनायकम्।
भक्तावासं स्मरेन्नित्यमायुष्कामार्थसिद्धये।।
प्रथमं वक्रतुण्डं च एकदन्तं द्वितीयकम्।
तृतियं कृष्णपिंगाक्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम्।।
लंबोदरं पंचमं च षष्ठं विकटमेव च।
सप्तमं विघ्नराजेन्द्रं धूम्रवर्णं तथाष्टमम्।।
नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकम्।
एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम्।।
द्वादशैतानि नामानि त्रिसंघ्यं यः पठेन्नरः।
न च विघ्नभयं तस्य सर्वसिद्धिकरं परम्।।
विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम्।
पुत्रार्थी लभते पुत्रान् मोक्षार्थी लभते गतिम्।।
जपेद् गणपतिस्तोत्रं षड्भिर्मासैः फलं लभेत्।
संवत्सरेण सिद्धिं च लभते नात्र संशयः।।
अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वा यः समर्पयेत्।
तस्य विद्या भवेत् सर्वा गणेशस्य प्रसादतः।।
ॐ श्री नारदपुराणे संकष्टनाशनं नाम गणेशस्तोत्रं सम्पूर्णम् !