स्त्रियाँ अपने अखण्ड सौभाग्य की रक्षा के लिए हरितालिका व्रत करती हैं। यह व्रत तृतीया तिथि को किया जाता है अतः इसे हरितालिका तीज व्रत कहा जाता है। जिस त्याग और निष्ठा के साथ यह व्रत किया जाता है वह बड़ा ही कठिन है। इसमें फलाहार की बात तो दूर निष्ठावान स्त्रियाँ जल तक नहीं ग्रहण करतीं। व्रत के दूसरे दिन प्रातः स्नान के उपरांत ही वे जल आदि पीकर पारण करती हैं। इस व्रत में मुख्य रूप से माँ पार्वती और शिवजी का पूजन किया जाता है। आइये जानें कब है अखण्ड सौभाग्य का रक्षक व्रत हरितालिका, क्या है इसका माहात्म्य, शुभ मुहूर्त एवं पूजा विधि।
हरितालिका व्रत माहात्म्य
इस व्रत को सर्वप्रथम गिरिराजनन्दिनी उमा जी ने किया जिसके फलस्वरूप उन्हें भगवान शिव पति के रूप में प्राप्त हुए थे। ‘आलिभिर्हरिता यस्मात् तस्मात् सा हरितालिका’ पार्वती जी सखियों के द्वारा हरी गई इसलिए इस व्रत का नाम हरितालिका हुआ। मान्यता है कि इस व्रत के अनुष्ठान से स्त्रियों को अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
कब करें हरितालिका व्रत (हरितालिका व्रत मुहूर्त)
भविष्योत्तर पुराण के अनुसार यह व्रत भाद्रपद शुक्ल पक्ष तृतीया को किया जाता है ‘भाद्रस्य कजली कृष्णा शुक्ला च हरितालिका।’ देवी पार्वती ने भाद्र शुक्ल तृतीया को ही हस्त नक्षत्र में इस व्रत को किया था, इसीलिए इस तिथि को यह व्रत किया जाता है। इसमें मुहूर्तमात्र हो तो भी परा तिथि ली जाती है क्योंकि द्वितीया पितामह की तो चतुर्थी पुत्र की तिथि है अतः द्वितीय का योग निषेध तो चतुर्थी का योग श्रेष्ठ माना गया है। इस वर्ष हरितालिका तीज का व्रत सोमवार, 18 सितम्बर 2023 को होगा जिसका पारण मंगलवार, 19 सितम्बर 2023 को किया जायेगा।
हरितालिका व्रत पूजा विधि
व्रत करने वाली स्त्रियों को चाहिए कि वे व्रत के दिन ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नानोपरांत ‘मम उमामहेश्वर सायुज्जसिद्धये हरितालिकाव्रतमहं करिष्ये’ मन्त्र से व्रत का संकल्प ले। इसके बाद कलश स्थापन कर उसपर शिव गौरी की मूर्ति या चित्र रखकर ‘ॐ उमायै नमः’, ‘ॐ पार्वत्यै नमः’, ‘ॐ जगद्धात्र्यै नमः’, ‘ॐ जगत्प्रतिष्ठायै नमः’, ‘ॐ शान्तिरूपिण्यै नमः’, ‘ॐ शिवायै नमः’, ‘ॐ ब्रह्मरूपिण्यै नमः’ से उमा के और ‘ॐ हराय नमः’, ‘ॐ महेश्वराय नमः’, ‘ॐ शम्भवे नमः’, ‘ॐ शूलपाणये नमः’, ‘ॐ पिनाकधृषे नमः’, ‘ॐ शिवाय नमः’, ‘ॐ पशुपतये नमः’, ‘ॐ महादेवाय नमः’ से महेश्वर के नामों से स्थापन कर षोडशोपचार पूजन करें। तत्पश्चात “देवी देवी उमे गौरी त्राहि मां करुणानिधे। ममापराधाः क्षन्तव्या भुक्तिमुक्तिप्रदा भव।।” मन्त्र से प्रार्थना करें और निराहार रहें। दूसरे दिन पुनः ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान के बाद शिव और पार्वती की पूजा कर व्रत का पारण करें।