भारतीय लोक संस्कृति और सनातन धर्म में नागों का विशेष महत्व है। गरुड़पुराण, भविष्यपुराण, चरकसंहिता, सुश्रुतसंहिता, भावप्रकाश आदि ग्रंथों में नाग सम्बन्धी विविध विषयों का उल्लेख मिलता है। जहाँ एक ओर भगवान विष्णु की शैय्या की शोभा नागराज शेष हैं तो वहीं भगवान शिव और गणेशजी के अलंकरणों की भी शोभा भी नाग ही हैं। नागों को भारतीय जनमानस में देवों का स्थान प्राप्त है। ग्राम, नगर और लोकदेवता के रूप में नागों के कई पूजास्थल हैं। प्रक्रिया में भिन्नता होते हुए भी नागपञ्चमी का उत्सव देश के सभी भागों में मनाया जाता है। आइये आगे जानते हैं क्या है नागपञ्चमी का माहात्म्य, पूजा विधि और कथा।
कब है नागपञ्चमी
श्रावण मास की शुक्ल पक्ष पंचमी को नागपञ्चमी का त्यौहार मनाया जाता है जो नागों को समर्पित है। यह पंचमी कम से कम सूर्योदय के बाद छः घड़ी जिस दिन हो और षष्ठी सहित हो उस दिन मनाने का विधान है। इस वर्ष यह त्यौहार (Nag Panchami 2023) सोमवार, 21 अगस्त 2023 को मनाया जाएगा।
नागपञ्चमी का माहात्म्य
नागपञ्चमी का पर्व नागों के साथ जीवों के प्रति सम्मान, उनके संवर्धन और संरक्षण की प्रेरणा देता है। हमारे ऋषि-मुनियों ने नागोपासना में अनेक व्रत-पूजन का विधान किया है जिनमें नागपञ्चमी प्रमुख है। श्रावण शुक्ल पंचमी को नागानामानन्दकरी अर्थात् नागों को अत्यंत आनंद देनेवाली कहा गया है। इस तिथि को नागपूजा में दूध से स्नान कराने का विधान है। कहा जाता है कि एक बार मातृ शाप से नागलोक जलने लगा। इस दाहपीड़ा की निवृत्ति के लिए नागपञ्चमी को दुग्धस्नान जहाँ नागों को शीतलता प्रदान करता है वहीं भक्तों को सर्पभय से मुक्ति भी देता है।
नागपञ्चमी पूजा विधि
नागपञ्चमी को नागों की पूजा का विधान है। इस दिन व्रत के साथ एक बार भोजन करने का नियम है। पूजा में पृथ्वी पर नागों का चित्रांकन किया जाता है। सोने, चाँदी, लकड़ी या मिट्टी से नाग बनाकर गंध, पुष्प, धूप, दीप एवं विविध नैवेद्यों से नागों का पूजन करना चाहिए। नागपूजन में नीचे दिए मन्त्रों से नागों को प्रणाम करना चाहिए:
सर्वे नागाः प्रीयन्तां मे ये केचित् पृथिवीतले।।
ये च हेलिमरीचिस्था येऽन्तरे दिवि संस्थिताः।
ये नदीषु महानागा ये सरस्वतिगामिनः।
ये च वापीतडागेषु तेषु सर्वेषु वै नमः।।
नागपञ्चमी कथा
नागपञ्चमी की कथा के श्रवण का बड़ा महत्व है। यह कथा सुमन्त मुनि ने पाण्डववंशी राजा शतानीक को सुनाई जिसके अनुसार समुद्र मंथन से निकले उच्चैःश्रवा नामक अत्यंत श्वेतवर्ण अश्व के रंग को लेकर नागमाता कद्रू और विमाता विनता में वाद-विवाद हो गया। कद्रू ने कहा कि अश्व के बाल काले हैं। यदि मैं गलत सिद्ध होऊं तो मैं तुम्हारी दासी बनूँगी अन्यथा तुम मेरी दासी बनोगी। नागमाता ने नागों को अश्व के बालों में सूक्ष्म रूप से आवेष्टित होने को कहा पर नाग इसमें विफल रहे। इस पर क्रुद्ध होकर नागमाता कद्रू ने नागों को शाप दिया कि पाण्डववंश के राजा जन्मेजय नागयज्ञ करेंगे जिसमें तुम सब जलकर भस्म हो जाओगे। शाप के डर से नागों ने ब्रह्माजी से इसका निवारण पूछा तो ब्रह्माजी ने कहा कि तुम्हारे बहनोई जरत्कारु का पुत्र आस्तीक तुम्हारी रक्षा करेगा। ब्रह्माजी ने श्रावण शुक्ल पंचमी तिथि को नागों को यह वरदान दिया और इसी तिथि को आस्तीक मुनि ने उनकी रक्षा की अतः नागपञ्चमी का महत्व कई गुना बढ़ जाता है।