Nirjala Ekadashi 2022: जानें कब है निर्जला एकादशी, इसका माहात्म्य, पूजा विधि, शुभ मुहूर्त एवं कथा

Published by Ved Shri Last Updated: June 5, 2022

ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष एकादशी को निर्जला एकादशी कहा जाता है। अन्य महीनों की एकादशी को फलाहार किया जाता है परन्तु इस एकादशी को फल तो क्या जल भी ग्रहण नहीं किया जाता। यह व्रत भीषण गर्मी में बड़े कष्ट और तपस्या से किया जाता है अतः अन्य एकादशियों से इसका महत्त्व सर्वोपरि कहा गया है। मान्यता है की इस एकादशी का विधि-विधान पूर्वक व्रत करने से व्यक्ति को सभी एकादशी व्रतों का पुण्य प्राप्त हो जाता है। इस वर्ष यह महापुण्यदायी तिथि (Nirjala Ekadashi 2022) शुक्रवार, 10 जून 2022 को पड़ रही है। आइये आगे जानते हैं क्या है इसका माहात्म्य, पूजा विधि, शुभ मुहूर्त एवं कथा।

निर्जला एकादशी माहात्म्य
एकादशियों में सर्वोपरि महापुण्यदायी निर्जला एकादशी का व्रत करने से आयु और आरोग्य की वृद्धि और उत्तम लोकों की प्राप्ति होती है। महाभारत में इसके माहात्म्य के बारे में वर्णन करते हुए व्यास जी ने कहा है कि जो कोई भी व्यक्ति वर्षभर की एकादशियों का व्रत ना कर पाए तो वह केवल निर्जला एकादशी के व्रत से ही पूरा फल प्राप्त कर लेता है।
वृषस्थे मिथुनस्थेऽर्के शुक्ला ह्येकादशी भवेत्।
ज्येष्ठे मासि प्रयत्नेन सोपोष्या जलवर्जिता।।
स्नाने चाचमने चैव वर्जयेन्नोंदकं बुधः।
संवत्सरस्य या मध्ये एकादश्यो भवन्त्युत।।
तासां फलमवाप्नोति अत्र मे नास्ति संशयः।

निर्जला एकादशी पूजा विधि
निर्जला एकादशी का व्रत सर्वथा निर्जल होना चाहिए। इस व्रत को करने वाले को अपवित्र अवस्था में आचमन के सिवा एक बूँद भी जल ग्रहण नहीं करना चाहिए। अतः अन्य किसी प्रकार से जल का उपयोग ना करें अन्यथा व्रत खंडित हो जाता है। निर्जला एकादशी को सम्पूर्ण दिन-रात निर्जल व्रत रहकर अगले दिन द्वादशी को प्रातः स्नान के उपरांत यथा सामर्थ्य द्रव्य, स्वर्ण और जलयुक्त कलश का दान कर व्रत का पारण करें।

निर्जला एकादशी शुभ मुहूर्त
व्रत का दिन – निर्जला एकादशी शुक्रवार, 10 जून 2022 को है
एकादशी तिथि का आरंभ – शुक्रवार, 10 जून 2022 को तड़के 02 बजकर 26 मिनट से
एकादशी तिथि का अंत – शनिवार, 11 जून 2022 को तड़के 01 बजकर 16 मिनट पर
एकादशी पारण का समय – शनिवार, 22 मई 2021 को सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक

निर्जला एकादशी कथा
पांडवों में भीमसेन की क्षुधा बड़ी तीव्र थी जिस वजह से उनसे निराहार व्रत-उपवास नहीं हो पाते थे। कहा जाता है की उनके उदर में वृक नाम की अग्नि थी जिस कारण उनमें भोजन पचाने की क्षमता और भूख बहुत अधिक थी। इसीलिए उन्हें वृकोदर भी कहा जाता है। एक बार व्यास जी के श्रीमुख से एकादशी को निराहार रहने का माहात्म्य सुनकर उनसे निवेदन किया कि भगवन् मुझसे कोई व्रत नहीं किया जाता अतः आप कोई ऐसा उपाय बताएं जिसके प्रभाव से सद्गति प्राप्त हो। तब व्यास जी ने कहा कि तुमसे वर्षभर की सम्पूर्ण एकादशी नहीं हो सकती तो केवल एक ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की निर्जला एकादशी कर लो, इसी से सालभर की एकादशी करने के समान फल मिल जाएगा। तब भीमसेन ने वैसा ही किया और स्वर्ग को गए। इसी से यह एकादशी ‘भीमसेनी एकादशी’ के नाम से भी जानी जाती है।

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