Apra Ekadashi 2021: जानें कब है अपरा एकादशी, इसका माहात्म्य, पूजा विधि, शुभ मुहूर्त एवं कथा

ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष एकादशी को अपरा एकादशी कहा जाता है। मान्यता है की इस दिन व्रत करने से व्यक्ति की सभी मुश्किलें दूर हो जाती हैं। श्रद्धालु अपने कष्टों को दूर करने हेतु इस दिन भगवान विष्णु की विधिवत पूजन करते हैं। इस वर्ष यह शुभ तिथि (Apra Ekadashi 2021) रविवार, 06 जून 2021 को पड़ रही है। आइये जानें क्या है अपरा एकादशी का माहात्म्य, पूजा विधि, शुभ मुहूर्त एवं कथा।

अपरा एकादशी माहात्म्य
महापुण्यदायी अपरा एकादशी व्रत के प्रताप से व्यक्ति अपार पापों से भी मुक्त हो जाता है और उसे विपत्तियों से छुटकारा मिलता है। यदि कोई राजा अपनी प्रजा की सेवा ना करे, धनी अभावग्रस्त की मदद ना करे, चिकित्सक बीमार की सेवा ना करे, गुरु योग्य शिष्य को ज्ञान ना दे या जो कोई भी व्यक्ति अपने कर्म अनुरूप कार्य नहीं करे और अपनी जिम्मेवारियों का सही तरीके से निर्वहन ना करे वे नरक के भागी होते हैं। लेकिन अपरा एकादशी व्रत के प्रभाव से ऐसे व्यक्ति भी निष्पाप हो जाते हैं और वैकुण्ठ के अधिकारी बन जाते हैं।
अपरासेवनाद् राजन् विपाप्मा भवति ध्रुवम्।
कूटसाक्ष्यं मानकूटं तुलाकूटं करोति च।।

अपरा एकादशी पूजा विधि
अपरा एकादशी का व्रत करने वाला जातक दशमी के दिन जौ, गेंहू और मूंग के पदार्थों का एक बार भोजन करे। फिर एकादशी के दिन प्रातः स्‍नानादि से निवृत्त हो “ममाखिलपापक्षयपूर्वक श्रीपरमेश्वरप्रीतिकामनया अपरा एकादशीव्रतं करिष्ये” मंत्र से व्रत का संकल्‍प करके उपवास रखे। दिन में लक्ष्मीकांत भगवान विष्णु की विधिपूर्वक पूजा अर्चना कर विष्णु सहस्रनाम का पाठ करे और अपरा एकादशी की कथा का श्रवण करे। रात्रि में भगवान का ध्यान करते हुए “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का मानसिक जाप करते हुए जागरण करे और अगले दिन द्वादशी को स्नानोपरांत पूजन के पश्चात व्रत का पारण करे।

अपरा एकादशी शुभ मुहूर्त
व्रत का दिन – अपरा एकादशी रविवार, 06 जून 2021 को है
एकादशी तिथि का आरंभ – शनिवार, 05 मई 2021 को सुबह 04 बजकर 08 मिनट से
एकादशी तिथि का अंत – रविवार, 06 जून 2021 को सुबह 06 बजकर 20 मिनट पर
एकादशी पारण का समय – सोमवार, 07 मई 2021 को सूर्योदय से लेकर 08 बजकर 49 मिनट तक

अपरा एकादशी कथा
अपरा एकादशी की कथा के अनुसार प्राचीन समय में महीध्वज नामक एक धर्मनिष्ठ और प्रतापी राजा थे। इनका छोटा भाई वज्रध्वज घोर पापी और कदाचारी था जो उनसे ईर्ष्या रखता था। उसने एक रात मौका पाकर अपने बड़े भाई की हत्या कर उनके शव को जंगल में एक पीपल के पेड़ के नीचे दबा दिया। अकाल मृत्यु होने की वजह से राजा प्रेत बनकर उसी पीपल पर रहने लगा और राहगीरों को परेशान करने लगा। एक दिन दैव योग से एक ॠषि उधर से गुजरे और अपने तप के बल से राजा के प्रेत बनने का वृत्तांत जान लिया। ॠषि ने राजा पर दया करके उन्हें प्रेत योनि से मुक्ति दिलाने के लिए अपरा एकादशी का व्रत किया और उसका पुण्य राजा को दे दिया जिसके फल से राजा को प्रेत योनि से मुक्ति मिल गई और स्वर्ग प्राप्त हुआ।

    Tags: