चैत्र शुक्ल पक्ष पंचमी को श्रीव्रत होता है। इसे श्री पंचमी, लक्ष्मी पंचमी, सौभाग्य व्रत आदि नामों से भी जाना जाता है। इस दिन माँ लक्ष्मी की पूजा करने से वे शीघ्र प्रसन्न होती हैं और जातक की मनोकामनाओं की पूर्ति करती हैं। कर्ज से परेशान और आर्थिक संकटों से जूझ रहे जातकों को इस दिन माँ लक्ष्मी का पूजन जरुर करना चाहिए। नवरात्र में इस दिन देवी के स्कंदमाता रूप की पूजा होती है अतः जो जातक नवरात्र व्रत करते हैं वे इस दिन स्कंदमाता के साथ-साथ माँ लक्ष्मी की पूजा भी कर सकते हैं। आइये जानते हैं सुख और समृद्धि दायक श्रीव्रत का महत्व, पूजा विधि और कथा।
श्रीव्रत का महत्व
श्रीव्रत का महत्व विष्णुधर्मोत्तर पुराण और भविष्योत्तर पुराण में बताया गया है। इस व्रत को करने से श्री अर्थात् लक्ष्मी की प्राप्ति होती है, सब दुःख दूर होते हैं और आयु एवं ऐश्वर्य की वृद्धि होती है। इस दिन कमलयुक्त सरोवर में स्नान कर स्वर्ण का दान करें तो श्री की प्राप्ति होती है तथा जो स्त्रियां इस व्रत को रखती हैं वे सौभाग्यवती होती हैं।
श्रीव्रत पूजा विधि
पंचमी के दिन प्रातः स्नानादि के पश्चात श्वेत वस्त्र धारण कर माँ लक्ष्मी की पूजा करें। पूजा में धान्य, हल्दी, अदरक, गन्ना, गुड़ आदि माता को अर्पण करें, श्रीसूक्त और कनकधारा स्तोत्र का पाठ करें, महालक्ष्मी मंत्र का जाप करें और कमल के फूलों का श्रीसूक्त से हवन करें। यदि कमल के फूल ना मिलें तो बेल के टुकड़ों का हवन करें और यदि वह भी उपलब्ध नहीं हो तो केवल घी का हवन करें।
श्रीव्रत की कथा
श्रीव्रत की कथा के अनुसार एक बार माँ लक्ष्मी देवताओं से नाराज हो गईं जिससे देवता श्रीहीन हो गए। तब इंद्रादि देवताओं ने माँ लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिये विधि-विधान से उपासना की और कठोर तप किया। अंततः माँ ने अपने भक्तों की पुकार सुनी और प्रकट हुईं जिसके बाद भगवान विष्णु से उनका विवाह हुआ और माँ की कृपा से देवता धन्य हुए। यह तिथि चैत्र शुक्ल पंचमी थी और इसीलिए इस दिन श्रीव्रत मनाया जाने लगा।