यूँ तो आशुतोष भगवान भोलेनाथ भक्तों से बहुत थोड़े में ही प्रसन्न हो जाते हैं और जो कोई भी उनकी सच्चे मन और पूर्ण समर्पण से पूजा अर्चना करता है उसकी पुकार जरूर सुनते हैं। परन्तु शास्त्रों में हर देवता की पूजा का एक विधान है, जिसके पालन से भक्त उनको और जल्दी प्रसन्न कर सकते हैं। आइये आज जानते हैं भगवान शिव की शास्त्रीय पूजा विधि (Shiv Puja Vidhi) जिसे आप सोमवार, प्रदोष व्रत, अष्टमी, शिव चतुर्दशी, महाशिवरात्रि, श्रावण या किसी भी शिव पूजन के समय अपनाकर भगवान शंकर को प्रसन्न कर सकते हैं।
सर्वप्रथम स्नानादि से निवृत्त हो स्वच्छ वस्त्र पहन आचमनकर पवित्री धारण करें। इसके उपरांत पूजा का संकल्प लें और फिर अक्षत पुष्प लेकर नीचे दिए मंत्र को पढ़ते हुए भगवान शिव का ध्यान करें:
ध्यायेनित्यं महेशं रजतगिरिनिभं चारुचंद्रावसन्तं
रत्नाकल्पोज्ज्वलाङ्गं परशुमृगवराभीतिहस्तं प्रसन्नम्।
पद्मासीनं समन्तात् स्तुतममरगणैर्व्याघ्रकृत्तिं वसानं
विश्वाद्यं विश्वबीजं निखिलभयहरं पंचवक्त्रं त्रिनेत्रम्।।
ध्यानार्थे अक्षतपुष्पाणि समर्पयामि ॐ शिवाय नमः।
फिर पुष्प लेकर नीचे दिए मंत्र से शिवजी का आह्वान करें:
आगच्छ भगवन्! देव ! स्थाने चात्र स्थिरो भव।
यावत् पूजां करिष्येऽहं तावत् त्वं सन्निधौ भव।।
श्रीभगवते साम्बशिवाय नमः। आह्वानार्थे पुष्पं समर्पयामि।।
इसके बाद बिल्वपत्र लेकर नीचे दिए मंत्र को पढ़कर आसन दें:
अनेकरत्नसंयुक्तं नानामणिगणान्वितम्।
इदं हेममयं दिव्यमासनं प्रतिगृह्यताम्।।
श्रीभगवते साम्बशिवाय नमः। आसनार्थे बिल्वपत्रं समर्पयामि।।
तदुपरांत जल लेकर नीचे दिए मंत्र से पाद्य दें:
गङ्गोदकं निर्मलं च सर्वसौगन्ध्यसंयुतम्।
पादप्रक्षालनार्थाय दत्तं मे प्रतिगृह्यताम्।।
श्रीभगवते साम्बशिवाय नमः। पादयो: पाद्यं समर्पयामि।।
तत्पश्चात चंदन, पुष्प, अक्षतयुक्त अर्घ्य समर्पित करें:
गन्ध पुष्पाक्षतैर्युक्तमर्घ्यं सम्पादितं मया।
गृहाण भगवन् शम्भो प्रसन्नो वरदो भव।।
श्रीभगवते साम्बशिवाय नमः। हस्तयोः अर्घ्यं समर्पयामि।।
अब कर्पूर से सुवासित शीतल जल से नीचे दिए मंत्र द्वारा आचमन करें:
कर्पूरेण सुगन्धेन वासितं स्वादु शीतलम्।
तोयमाचमनीयार्थं गृहाण परमेश्वर।।
श्रीभगवते साम्बशिवाय नमः। आचमनीयं जलं समर्पयामि।।
फिर गंगाजल मिश्रित जल से नीचे दिए मंत्र को पढ़ते हुए स्नान कराएं:
मन्दाकिन्यास्तु यद्वारि सर्वपापहरं शुभम्।
तदिदं कल्पितं देव स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्।।
श्रीभगवते साम्बशिवाय नमः। स्थानीय जलं समर्पयामि।।
स्नान के उपरांत नीचे दिए मंत्र से वस्त्र अर्पित करें:
शीतवातोष्णसंत्राणं लज्जाया रक्षणं परम्।
देहालङ्करणं वस्त्रं धृत्वा शान्तिं प्रयच्छ मे।।
श्रीभगवते साम्बशिवाय नमः। वस्त्रं समर्पयामि।।
वस्त्र अर्पण के पश्चात यज्ञोपवीत (जनेऊ) चढ़ाएं:
नवभिस्तन्तुभिर्युक्तं त्रिगुणं देवतामयं।
उपवीतं मया दत्तं गृहाण परमेश्वर।।
श्रीभगवते साम्बशिवाय नमः। यज्ञोपवीतं समर्पयामि।।
इसके बाद मलयागिर चन्दन नीचे दिए मंत्र को पढ़ते हुए लगाएं:
श्रीखण्डं चन्दनं दिव्यं गन्धाढ्यं सुमनोहरम्।
विलेपनं सुरश्रेष्ठ चन्दनं प्रतिगृह्यताम्।।
श्रीभगवते साम्बशिवाय नमः। चंदनानुलेपनं समर्पयामि।।
चन्दन के पश्चात नीचे दिए मंत्र को पढ़ते हुए कुङ्कुमयुक्त अक्षत चढ़ाएं:
अक्षताश्च सुरश्रेष्ठ कुङ्कुमाक्ताः सुशोभिताः।
मया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वर।।
श्रीभगवते साम्बशिवाय नमः। अक्षतान् समर्पयामि।।
फिर नीचे दिए गए मंत्र को पढ़ते हुए पुष्प एवं पुष्पमाला चढ़ाएं:
माल्यादीनि सुगन्धीनि मालत्यादीनि भक्तितः।
मयाऽऽहृतानि पुष्पाणि गृहाण परमेश्वर।।
श्रीभगवते साम्बशिवाय नमः। पुष्पमालां समर्पयामि।।
पुष्प चढ़ाने के पश्चात शिवजी को अत्यंत प्रिय बिल्वपत्र नीचे दिए मंत्र से चढ़ाएं :
त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रिधायुतम्।
त्रिजन्मपापसंहारं बिल्वपत्रं शिवार्पणम्।।
श्रीभगवते साम्बशिवाय नमः। बिल्वपत्रं समर्पयामि।।
इसके बाद नीचे दिए मंत्र को पढ़ते हुए भगवान को धूप दिखाएं:
वनस्पतिरसोद्भूतो गन्धाढ्यो गंध उत्तमः।
आघ्रेयः सर्वदेवानां धूपोऽयं प्रतिगृह्यताम्।।
श्रीभगवते साम्बशिवाय नमः। धूपमाघ्रापयामि।।
धूप के बाद नीचे दिए मंत्र को पढ़ते हुए दीप दिखाएं:
साज्यं च वर्तिसंयुक्तं वह्निना योजितं मया।
दीपं गृहाण देवेश ! त्रैलोक्यतिमिरापहम्।।
श्रीभगवते साम्बशिवाय नमः। दीपं दर्शयामि।।
धूप-दीप के पश्चात हाँथ धोकर नीचे दिए मंत्र से भगवान को नैवेद्य अर्पित करें:
शर्कराखण्डखाद्यानि दधिक्षीरघृतानि च।
आहारं भक्ष्यभोज्यं च नैवेद्यं प्रतिगृह्यताम्।।
श्रीभगवते साम्बशिवाय नमः। नैवेद्यम निवेदयामि।।
नैवेद्य के उपरांत नीचे दिए मंत्र को पढ़कर आचमन करके भगवान के हाँथ मुंह धुलायें:
नैवेद्यान्ते ध्यानम् आचमनीयं जलं उत्तरापोऽशनं।
हस्तप्रक्षालनार्थं मुखप्रक्षालनार्थं च जलं समर्पयामि।।
फिर नीचे दिए मंत्र से इलायची, लौंग, सुपारी के साथ पान चढ़ाएं:
पूगीफलं महद्दिव्यं नागवल्लीदलैर्युतम्।
एलालवङ्गसंयुक्तं ताम्बूलं प्रतिगृह्यताम्।।
श्रीभगवते साम्बशिवाय नमः। ताम्बूलं समर्पयामि।।
ताम्बूल के उपरांत नीचे दिए मंत्र से दक्षिणा अर्पण करें:
हिरण्यगर्भगर्भस्थं हेमबीजं विभावसोः।
अनन्तपुण्यफलदमतः शान्तिं प्रयच्छ मे।।
श्रीभगवते साम्बशिवाय नमः। दक्षिणां समर्पयामि।।
तत्पश्चात नीचे दिए मंत्र से पुष्पांजलि दें:
श्रद्धया सिक्तया भक्त्या हार्दप्रेम्णा समर्पितः।
मन्त्रपुष्पाञ्जलिश्चायं कृपया प्रतिगृह्यताम्।।
श्रीभगवते साम्बशिवाय नमः। मन्त्रपुष्पाञ्जलिं समर्पयामि।।
और अंत में नीचे दिए मंत्र को पढ़ते हुए भगवान से क्षमा प्रार्थना करें:
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वर।
यत्पूजितं मया देव परिपूर्णं तदस्तु मे।।
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“सत्यम शिवम् सुंदरम”